श्रेणिक राजा

मगध देश के राजा का नाम प्रसेनजित था। उनके सौ पुत्र थे। उन सौ पुत्रों में से श्रेणिक बहुत ही बुद्धिशाली और पराक्रमी थे। अपने रूप और गुणों के कारण वे सभी राजकुमारों से अलग ही दिखाई देते थे। एक दिन राजा प्रसेनजित ने सभी राजकुमारों की परीक्षा लेने का विचार किया।

राजा ने एक बड़े मंडप में सभी राजकुमारों को भोजन करने के लिए बुलाया। सभी की थाली में भोजन परोसा गया। कुछ ही देर में राजा ने एक इशारा किया और वहाँ तुरंत शिकारी कुत्ते आ गए। खतरनाक कुत्तों को आते देखकर श्रेणिक के अलावा सारे राजकुमार भाग गए। श्रेणिक तो बहुत बुद्धिशाली थे। वे शांति से वहीं बैठे रहे। उन्होंने दूसरे राजकुमारों की थाली कुत्तों की ओर खिसका दिया। कुत्ते दूसरे राजकुमारों की थाली से खाने लगे। उतनी देर में श्रेणिक ने शांति से भोजन कर लिया।

राजा ने दूसरी परीक्षा ली। उन्होंने खाजा-पूरी से भरा हुआ टोकरा तैयार करवाया। सारे टोकरे को सीलकर ढकवा दिया। उसके बाद मिट्टी की सुराही तैयार करवाया। उसमें पानी भरवाकर सुराही का मुँह सीलवा दिया। उन सबको उन्होंने एक बड़े कमरें में रखवा दिया।

फिर सौ पुत्रों से कहा, ‘बेटा आज पूरे दिन और रात आपको इस बड़े से कमरे में रहना है। भूख लगे तब इस टोकरे को खोले बिना खा लेना और प्यास लगे तो सुराही को खोले बिना पानी पी लेना लेकिन भूखे-प्यासे मत रहना।’ यह बात सुनकर सारे राजकुमार सोच में पड़ गए कि अब क्या करें ? कैसे खाएँ ? अंत में कोई उपाय न मिलने पर यूँ ही बैठे रहे।

परंतु श्रेणिक राजकुमार तो यूँ ही बैठे रहें ऐसे नहीं थे ?! उन्होंने एक युक्ति की। उन्होंने एक टोकरे को दिवार से टकराया। टकराने पर खाजा-पूरी का चूरा बन गया।

फिर पानी से भरे हुए नए सुराही पर कपड़ा लपेट दिया। मिट्टी की सुराही में से पानी झरने के कारण थोड़ी ही देर में कपड़ा गीला हो गया। कपड़ा निचोड़कर उन्होंने पानी निकाला। खुद ने पीया और अन्य राजकुमारों को भी पिलाया।

राजा प्रसेनजित को समझ में आ गया कि उनके सभी राजकुमारों में से सबसे बुद्धिशाली कौन है ! इस तरह किसी भी कठिन परिस्थिति में राजकुमार श्रेणिक बिना उलझन के या बिना घबराहट के उपाय ढूँढ लेते और सरलता से उससे बाहर निकल जाते।