बाहुबली भाग १

आप सबने भगवान रिषभदेव का नाम तो सुना ही होगा I भगवान रिषभदेव के सौ पुत्र थे और दो पुत्रियाँ थी, ब्राह्मी और सुंदरी I भगवान रिषभदेव कई सालों तक राजा के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाते है I अपने राज्य के लोगों को खेतीबाड़ी, पढाई, व्यवहार सब सिखाते है I बाद में वो संसार को त्यागकर, मोक्ष की साधना के लिए जंगल में निकल पड़ते है I उनके साथ उनके दो बड़े पुत्र भरत और बाहुबली के अलावा 98 पुत्रो और पुत्री सुंदरी भी दीक्षा लेती है I और साथ में और साथ में खंडणी राज्यों के 4000 राजा भी दीक्षा लेते है I

भरत बड़ा पुत्र होने की वजह से रिषभदेव भगवान उसे राजगद्दी सोंपते है और बहुबली को एक बड़ा राज्य देते है I अब राजा भरत छ खंड का राजा बनना चाहता है इसलिए वो बाहुबली राज्य पाने के लिए उसके साथ युद्ध करने के लिए तैयार होता है I अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए बाहुबली भी युद्ध का स्वीकार करता है I दोनों भाई बहुत बलवान है I एक तरफ भरत चक्रवर्ती  I चक्रवर्ती मतलब ऐसा राजा जिसे कोई हरा नहीं सकता I पूरी पृथ्वी के राज्य जो जित ले I और दूसरी तरफ बाहुबली, जिसके बाहू मतलब हाथों में इतना बल हो की उसका सामना कोई भी ना कर सकें I अगर वो अपना हाथ किसीके सीर पर मारे है तो वो व्यक्ति वहीँ के वहीँ मर जाए I अब अगर ये दो महारथी युद्ध करे तो पूरी पृथ्वी का संहार हो जाए इतना बड़ा युद्ध होगा Iइसलिए देवगण उनसे बिनती करते है की अगर आप युद्ध करना चाहते है तो काययुद्ध कीजिए ताकी सैन्य बच जाए I काययुद्ध मतलब कुस्ती I जो जीतता है उसे चक्रवर्ती का राज्य मिलेगा I दोनों भाई देवों की बिनती स्वीकारते है I

युद्ध शुरू होता है I अलग-अलग तरीके से कुस्ती के दाँव खेले जाते है ! सभी खेल में बाहुबली जीतते जाते है और भरत राजा हारते जाते है I युद्ध जितने के लिए अंत में बहुत क्रोधित होकर सारी शक्तियाँ इकट्ठा करके बाहुबली मुट्ठी से भरत राजा के सीर पर प्रहार करने जाता है, वहीँ....

अचानक उन्हें ऐसा विचार आता है की, 'यह मैं क्या कर रहा हूँ ? अपने ही छोटे भाई को मारने के लिए तैयार हो गया ? और वो भी किसलिए ? इस राज्य और वैभव के लिए ? सही माइनो में जिसके अधिकारी वो ही है, क्योंकि वो मुझसे बड़े है और मेरे पिता ने ही उन्हें यह राज्य सोंपा है और ये वैभव और सबकुछ तो विनाशी ही है I मेरे पिता और भाई इसी वैभव कों छोडकर संयम के मार्ग पर चले गये और उसी वैभव के लिए मैं ऐसी हिंसा करने के लिए तैयार हो गया ? धिक्कार है I'

इस तरह अपनी आत्मा के आगे, मोक्ष के आगे, इन सब की कोई किमत नहीं है यह समझ में आने से उसे वैराग उत्पन्न होता है और जिस हाथ को उन्होंने अपने भाई को मारने के लिए उठाया था उसी हाथ से अपने बालों कों खिंचकर, मुंडन करते है और दीक्षा लेकर साधना के लिए जंगल में चले जाते है I

मित्रो,

हम भी अपने भाई-बहन या दोस्तों के साथ छोटी-छोटी चीजों के लिए जगडा या मारा-मारी कर बैठते है, जबकी भगवान की द्रष्टी में तो मोक्ष में निरंतर सुख है, आत्मा में निरंतर सुख है I उस सुख के आगे तो राज-वैभव की भी कोई किमत नहीं है I और हमें तो मोक्ष में जाना है ना ?