गणेशजी को मिला हाथी का सिर

हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री गणेश जो 'प्रथम भगवान' माने जाते हैं, वे भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। उनके विशेष गुणों की वजह से वे आसानी से पहचाने जा सकते हैं। हाथी जैसा सिर, लंबे दाँत और उसके साथ बड़े-बड़े कान, इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी एक अलग पहचान हैं।बच्चों, क्या आप जानते हैं कि श्री गणेश भगवान को हाथी का सिर कैसे मिला?

आओ हम इसके पीछे की कहानी जानें...
एक बार जब देवी पार्वती स्नान करने की तैयारी कर रही थी, तब उन्होंने नंदी (शिव जी का बैल) को दरवाज़े पर पहरा देने का निर्देश दिया ताकि कोई भीतर न आ सके। कुछ देर बाद ही भगवान शिव वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने नंदी को बाहर खड़ा पाया। भगवान शिव के प्रति अपनी वफादारी के कारण नंदी उन्हें भीतर जाने से रोक ना सके। इस घटना से आक्रोशित होकर देवी पार्वती ने मन ही मन में तय किया कि उन्हें भी अपना एक रक्षक चाहिए। जिस तरह नंदी, भगवान शिव के प्रति वफादार है, वैसे ही उन्हें भी कोई ऐसा चाहिए जो उनके प्रति वफादार रहे।

एक दिन जब देवी पार्वती स्नान की तैयारी कर रही थीं, तब उन्होंने अपने लिए एक रक्षक बनाने का तय किया| उन्होंने अपने शरीर पर लगे हुए चंदन, हल्दी और तेल के लेप को उतारकर एक लड़के के आकार के पूतले का सर्जन किया। फिर उन्होंने उसमें प्राण भरे और उसे अपना पुत्र 'गणेश', ऐसा नाम घोषित किया।

उन्होंने गणेश को स्नान-घर के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया और कहा कि किसी को भी भीतर न आने दे। पूरी ईमानदारी के साथ गणेश अपनी माँ की आज्ञा का पालन करते हुए, दरवाज़े के बाहर पहरा देने लगे।

थोड़ी ही देर में भगवान शिव वहाँ आ पहुँचे। एक छोटे बालक को देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ और वे भीतर जाने लगे| लेकिन बाल गणेश ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया। उन्हें यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने खुद का परिचय देते हुए कहा कि, वे देवी पार्वती के पति हैं। इतना कहने के बावजूद भी गणेश वही खड़े रहे। उसकी इस ज़िद्द से शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने तुरंत ही अपना त्रिशूल निकाला और बस एक ही वार में गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।

यह सारा कोलाहल सुनकर देवी पार्वती दौड़ती हुई बाहर आईं। बाहर का दृश्य देखकर वे चौक गईं। अपने बेटे का बगैर सिर का शरीर देखकर उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। जो कुछ भी हुआ उसे देखकर वे बहुत आक्रोशित हो गई और क्रोध में आकर उन्होंने पूरी सृष्टि का विनाश करने की धमकी दी।

देवी पार्वती का यह एलान सुनकर वहाँ मौजूद सभी देवी-देवता भयभित हो गए। उन सब ने मिलकर देवी पार्वती को समझाने की बहुत कोशिश की, कि वे अपने शब्द वापस ले लें। लेकिन उनकी सारी कोशिशें नाकाम होती देखकर स्वयं ब्रह्मा जी ने देवी पार्वती को अपने शब्दों पर गौर करने की विनती की। अंत में, देवी पार्वती ने उनकी बात स्वीकार कर ली लेकिन ऐसा करने से पहले उन्होंने अपनी भी दो शर्तें रखी :

पहली शर्त : गणेश को वापस जीवित किया जाए।
दूसरी शर्त : सारे देवी-देवताओं में सब से पहले गणेश की पूजा होनी चाहिए।

इन शर्तों को सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गए। परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव से अनुरोध किया कि अब वे ही कुछ कर सकते हैं। अपनी प्रिय पत्नी को रिझाने के लिए भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे सब जाएँ और जो भी पहला जीव मिले उसका सिर ले आए और खास ध्यान रखें कि वह सिर उत्तर दिशा की ओर हो। तुरंत ही सारे गण, ऐसे जीव की तलाश में निकल पड़े और कुछ ही देर में एक हाथी का सिर लेकर वापस लौटे।

शिव जी ने वह सिर गणेश के शरीर से जोड़ दिया और अपनी अलौकिक शक्तियों से उसे फिर से जीवित किया। उन्होंने गणेश को अपना पुत्र घोषित करते हुए उसे अपने गणों का नेता भी बनाया। और इस तरह श्री गणेश को ' गणपति', यह नाम मिला।

तो प्यारे बच्चों, अब पता चला कि हम किसी भी नए कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से क्यों करते हैं?

श्री गणेश श्लोक -

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।

अर्थात् -

हे मंगलमूर्ति गणेश, आपकी मुड़ी हुई सूंढ है और बड़ा शरीर है। करोड़ों सूर्य के प्रकाश जैसा आपका तेज है। हे गणपति, मेरे हर एक कार्य में आनेवाले सारे विघ्नों को हमेशा के लिए दूर करो।

Lord Ganesha Song- Deva Di Deva