प्राचीन समय में, बुद्ध भगवान अपने शिष्यों के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव पैदल ही जाते थे। एक दिन एक तालाब के पास से निकलते हुए, बुद्ध और उनके शिष्य आराम करने के लिए रुके। उन्होंने अपने शिष्य से कहा, “मुझे प्यास लगी है, तालाब से मेरे लिए थोड़ा पानी ले आओ।"
जब शिष्य तालाब के पास गया तो उसने देखा कि लोग उसमें कपड़े धो रहे थे और तभी एक बैलगाड़ी तालाब में से निकल रही थी। पानी गंदा हो गया था इसलिए शिष्य को लगा कि यह पानी बुद्ध के पीने लायक नहीं है।
उसने वापस आकर बुद्ध से कहा, “पानी बहुत गंदा है और पीने लायक नहीं है।" बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा, "हम इस पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करते हैं।" थोड़ी देर बाद बुद्ध ने उसी शिष्य से फिर से तालाब से पानी लाने के लिए कहा, आज्ञापूर्वक शिष्य तालाब के पास गया और देखा तो पानी एकदम साफ हो गया था। मिट्टी तालाब के तले में बैठ गई थी। और ऊपर का पानी पीने लायक हो गया था। इसलिए मटकी में पानी लेकर बुद्ध के पास ले आया।
बुद्ध ने पानी के सामने देखा और फिर शिष्य के सामने देखकर कहा, “देखा, कुछ समय जाने दिया इसलिए पानी कितना स्थिर हो गया! मिट्टी अपने आप ही तालाब के तले में बैठ गई और तुम्हें साफ पानी मिल गया, कुछ मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ी।"
आपने कुछ भी नहीं किया हो फिर भी, आपका मित्र अकुला जाए या गुस्सा हो जाए तो आपको पता नहीं चलता कि आपके मित्र के लिए आज का दिन अच्छा नहीं है? धीरज रखकर इंतज़ार करो और थोड़ा समय जाने दो, आपका मित्र आपके पास वापस आएगा। पानी को स्थिर होने दोगे तो मिट्टी अपने आप ही नीचे बैठ जाएगी।