हमने देखा कि, बाहूबली युद्ध जितने ही वाले थे कि उन्हें वैराग्य आ जाता है। और जो मुट्ठी भरत राजा को मारने वाले थे उसी मुट्ठी से खुद के बाल नोंच दिए और दीक्षा लेकर जंगल में साधना करने निकल गए। अब देखते हैं कि आगे क्या होता है...
दीक्षा लेने के बाद वे भी भगवान ऋषभदेव के साथ रहकर साधना करने का सोचते हैं। वहीं पर उन्हें अपने ९८ भाईयों की याद आती हैं। पिता के साथ ही उनके ९८ छोटे भाई ने भी दीक्षा ली थीं। अब दीक्षा में कैसा होता है कि, जिन्होंने पहले दीक्षा ली हों तो वे भले ही उम्र में छोटे हों, लेकिन दीक्षा के मार्ग में बड़े कहलाते हैं। ये याद आते ही उन्हें हुआ कि, अगर में उनके पास जाऊँगा तो मुझे रोज़ मेरे छोटे भाईयों के पैर छूने पड़ेंगे, बड़ा होने के बावजूद भी मुझे मेरे छोटे भाईयों का शिष्य होकर रहना पड़ेगा। ऐसा मुझ से नहीं होगा। मैं अपने आप साधना करके मोक्ष में जा सकता हूँ। ऐसा उनको अहंकार आता है। उनके अंदर मान उत्पन्न होता है और वे तभी से अपने आप केवलज्ञान पाने के लिए प्रयत्न करने का नक्की करते हैं और जंगल में साधना करने चले जाते हैं।
सिर्फ एक मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा से बाहूबली एक आसन पर खड़े होकर खूब कठिन तप करते हैं। उन्हें ठंडी, धूप, गर्मी, भूख, तरस, दर्द, मच्छर, जीव-जन्तु का उपद्रव इन सब की परवाह नहीं थीं। वर्षों बीत गए। स्थिर खड़े हुए बाहूबली के पैर पर, उनके आस-पास बेल चढ़ने लगीं। धीरे-धीरे उनके मुँह को छोड़कर पुरे शरीर पर बेल चढ़ गई, साँप पाम्बी बाँधने लगे, उसके बाद भी बाहूबली स्थिर ही रहें। हजारों वर्षों के कठिन तप के बाद भी उन्हें केवलज्ञान नहीं हुआ। जबकि यहाँ ऋषभदेव भगवान केवलज्ञानी थे। उन्हें तो केवलज्ञान में सब दिखता था। उन्होंने देखा कि, बाहूबली का मान और अहंकार के कारण ही केवलज्ञान रुका हुआ है। भगवान तो बहुत करुणा वाले हैं। उन्होंने बाहूबली के कल्याण के लिए खटपट की। फिर उन्होंने उनकी शिष्या ब्राह्मी और सुंदरी, जो बाहूबली की बहनें थी, उनको बुलाया और उनके द्वारा बाहूबली के लिए संदेश भिजवाया।
ब्राह्मी और सुंदरी दोनों जंगल में पहुँचते हैं। बाहूबली अड़ग और स्थिरता से उसी मुद्रा में तप कर रहे हैं। दोनों बहन भाई से कहती हैं, “गज थकी हेठा उतरो रे वीरा, गज चढ़े केवल न होय”।
ध्यान में मग्न बाहूबली अपनी बहनों की बात सुनकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि, बहने यह क्या कह रही हैं? मैं कहाँ हाथी पर बैठा हूँ? मैं तो मुनि अवस्था में तप कर रहा हूँ। पर बहने ऐसे ही कुछ नहीं कहतीं। ज़रूर इस बात के पीछे कुछ रहस्य छुपा होगा। थोड़ा विचार करते हुए थोड़ी ही क्षण में उन्हें समझ में आ जाता है कि, बहनों की बात सही है। मैं मान रूपी गज यानी कि हाथी पर बैठा हूँ। भाईयों के सामने नहीं झुकना वो मान ही कहलाता है ना? खूद ही मोक्ष पा सकता हूँ यह तो मेरा अहंकार ही कहलाएगा ना? मान के साथ कभी भी मोक्ष नहीं हो सकता। उन्हें अपनी भूल समझ में आई और खूब पश्चाताप होता है। उन्होंने तुरंत ही ऋषभदेव भगवान के पास जाकर अपने छोटे भाईयों को प्रणाम करने का निश्चय किया। ऐसा निश्चय करके जैसे ही पैर उठाते हैं कि, उन्हें उसी क्षण केवलज्ञान हो जाता है।
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