ऋषभदेव भगवान, वर्तमान के पहली चोवीसी के तीर्थंकर थे, उनके पिछले भव की बातें सुनते हैं। सम्यक दृष्टि होने के बाद यह चौथे भव की बात है। सतबल राजा और स्वयंप्रभा रानी के यहाँ एक बालक का जन्म हुआ। उस बालक का नाम महाबल रखा। नाम के जैसा ही उसमें खूब बल था। उसमें बहुत सारी विद्या भी थी। लाड-प्यार से पले राजकुंवर ने अब युवावस्था में प्रवेश किया। उनके माता-पिता को अब यह विश्वास हुआ कि, अब महाबल राज संभाल लेंगे, इसलिए उन्होंने भगवान के पास से दीक्षा लीं और साधना करने जंगल में चले गए। इस तरह महाबल राजा बने।
महाबल राजा के 5-6 मंत्रियाँ थे। उनमें से स्वयंबुद्ध मंत्री के अलावा सभी मंत्री बहुत टेढ़े थे। यानी कि भोग-विलास में, मौज-शौक में जीवन बिताते और इन सब का राजा महाबल पर बहुत प्रभाव पड़ा और वे भी भोग-विलास में पड़ गए। अब राजा ऐसा होगा तो राज्य में अंधाधुध फैलेगा ही। यह सब स्वयंबुद्ध मंत्री से सहन नहीं हो रहा था। स्वयंबुद्ध मंत्री खूब ही सात्विक और धार्मिक थे। वे सम्यक दृष्टि थे। इसलिए वे मोक्ष के ध्येय से जीवन जीते और मंत्री होने का फर्ज पूरा करते।
एक दिन स्वयंबुद्ध मंत्री मुनि के दर्शन करने गए। उन्हें अवधिज्ञान हुआ था। अवधिज्ञान मतलब पिछले काल और इस काल को देख सकते हैं (सतयुग में यह ज्ञान संभव है)। मंत्री ने मुनि से खूद के ह्रदय की बात कही कि, हमारा राजा ऐसा है तो राज्य का क्या होगा, इसका मुझे बहुत भार रहता है। मुनि को तो अवधिज्ञान में सब कुछ दिखता था, तो उन्होंने कहा, “आपके राजा का ह्रदय परिवर्तित होगा और वे तेजस्वी बनेंगे। राजा सिर्फ एक ही महीने जीने वाले हैं”।
यह सुनकर मंत्री कहते हैं, “हे राजन, आप भोग-विलास करते हैं, तो यह गलत कर रहे हैं। यह सब विनाशी है। इन सब का अंत आने वाला है। आप अपने आत्मा के लिए साधना कीजिए”। राजा ने यह सुनकर जवाब दिया, “साधना बुढ़ापे में करूँगा। अभी तो जवानी है। मुझे मज़े करने दो”। मंत्री ने राजा को समझाने के लिए मुनि महाराज की पूरी बात कही। खूद की मृत्यु नजदीक है, ऐसा सुनकर राजा और उनके दूसरे मंत्री हैरत में पड़ गए। राजा को खुद के सभी पाप आँखों के सामने दिखाई देने लगें। अब कैसे छूटेंगे उसके मंथन में पड़ गए।
स्वयंबुद्ध मंत्री जो सम्यक दृष्टि थे, उन्होंने राजा को समझाते हुए कहा, “राजा, चिंता मत करो, हमसे जो-जो भी पाप हुए हैं उन सभी पापों का यदि सच्चे ह्रदय से पछतावा करते हैं, तो उन सभी पापों से छूट सकते हैं”। राजा ने तो पापों का प्रतिक्रमण करना शुरू कर दिया। और एक-एक को याद कर-करके मांफी माँगकर छूट गए और एक महीने के बाद ही मृत्यु को पाकर देवगति में जन्म लिया।
इसलिए मित्रों,
1) बड़ा होकर ही धर्म कर सकते हैं, ऐसी मान्यता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि मृत्यु कभी भी आ सकती है ऐसा है।
2) हो चुके पापों का सच्चे ह्रदय से माँफी मांग ले तो, सभी पाप धुल जाते हैं।
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