राजा मेघरथ

भगवान शांतिनाथ पूर्व जन्म में राजा मेघरथ थे, जो महाविदेह क्षेत्र में आई हुई पुंडरीकगिरी नगरी के राजा धनरथ के पुत्र थे। राजा धनरथ ने अपना राज्य अपने पुत्र को सौंपकर सन्यास ग्रहण कर लिया था।

मेघरथ एक धर्मप्रिय राजा थे। वे बहुत ही दयालु और सभी जीवों की रक्षा करते थे। एक क्षत्रिय योद्धा होने की वजह से उनके अंदर इतना विनय और विवेक था कि किसी को भी तकलीफ से बचाने के लिए वे अपना सबकुछ बलिदान कर देते थे।

एक समय की बात है, जब वे एक तरफा स्वैच्छिक परित्याग व्रत का पालन कर रहे थे और तीर्थंकरों द्वारा दिए हुए धर्म के प्रचार के हेतु से व्याख्यान शुरू करनेवाले थे। तब अचानक भय से काँपता हुआ एक कबूतर उनकी गोद में आ पड़ा और दबे हुए मनुष्य की आवाज़ में बोला। "हे राजन ! मुझे बचाइए, मुझे अपनी शरण में लीजिए, मेरी रक्षा कीजिए!" दयालु राजाने पक्षी को पास लेकर अपने शरण में लिया।

 उस कबूतर का पीछा करते हुए एक बाज़ पक्षी वहाँ आ गया। कबूतर को राजा की निश्रा में देखकर वह भी मनुष्य की आवाज़ में बोला, "हे राजन! यह कबूतर मेरा भोजन है। आप उसे छोड़ दीजिए।" राजा ने कहा, "अभी वह मेरी शरण में है इसलिए मैं उसकी रक्षा करने के लिए कर्तव्यबद्ध हूँ। मैं तुम्हें जैसा चाहो वैसा भोजन करवाऊँगा, तुम अपना पेट भरने के लिए एक जीव की हत्या क्यों करना चाहते हो?"

बाज़ ने आग्रह किया, "अगर आप उसे नहीं छोड़ेंगे तो मैं भूख से मर जाऊँगा। मैं एक मांसाहारी हूँ। अगर मैं मर जाऊँगा तो उसके ज़िम्मेदार आप होंगे और आपको पाप लगेगा।"

बाज़ के नहीं मानने पर अंत में मेघरथ ने कहा, "हे बाज़! जब तक मैं जिंदा हूँ, मैं तुम्हें इस कबूतर को मारने नहीं दूँगा। उसके बदले मैं तुम्हें अपने शरीर में से इस कबूतर के वज़न जितना मांस काटकर देता हूँ। उससे तू अपना पेट भर ले लेकिन किसी भी हालत में मैं तुम्हें मेरी शरण में आए हुए पक्षी को मारने नहीं दूँगा।"

बाज़ ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी। राजा ने कबूतर को तराजू के एक पलड़े में रखा और दूसरे पलड़े में अपने शरीर से मांस के टुकड़े काटकर रखना शुरू किया। वहाँ उपस्थित सभी लोग इस द्रश्य को देखकर दंग रह गए। सभी की आँखें आँसू से भीग गई।

लेकिन यह क्या? कबूतर का वज़न बढ़ता ही जा रहा था। राजा ने अपने शरीर से मांस काटकर पलड़े में रखना चालू ही रखा। रानियों और सभासदों के लिए यह द्रश्य देखना असह्य हो गया। उन्होंने राजा से विनती की, "हे राजन, आप अपना अमूल्य जीवन एक साधारण कबूतर के लिए बलिदान मत कीजिए।" लेकिन राजा नहीं माने।अंत में बाज़ ने भी सहानुभूति से दरख्वास्त की लेकिन राजा ने मना कर दिया।

राजा ने अपने शरीर से मांस काटकर तराजू के दूसरे पलड़े में रखना चालू रखा। अंत में जब मांस के टुकड़े कम पड़ गए तब राजा अपनी जगह से उठकर तराजू के दूसरे पलड़े में बैठ गए। यह देखकर वहाँ उपस्थित सभी चौंक उठे।

अचानक वहाँ एक दिव्य प्रकाश हुआ और एक देव वहाँ उपस्थित हुए। कबूतर और बाज़ वहाँ से अद्रश्य हो गए। देव ने राजा को संबोधित करते हुए कहा, "महाराज! देवराज ने अपनी सभा में आपकी दया और साहस की प्रसंशा की थी। मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया और आपको परखने के लिए खुद ही यहाँ आ पहुँचा। ये सारा मेरा ही निर्माण किया हुआ था। आप इसमें से सफलतापूर्वक पार उतर गए हैं। देवराज ने आपकी जो प्रसंशा की थी उसके आप हकदार हैं। मुझे क्षमा कर दीजिए।" देव ने मेघरथ के घाव तुरंत ही भर दिए और अद्रश्य हो गए।

 आज भी जब दिन-दुःखियों की सहाय करने जैसे उदार सिद्धांतवाले व्यवहार और दया की बात होती है, तब राजा मेघरथ का नाम सन्मान से लिया जाता है। राजा मेघरथ की असामान्य पवित्रता और निश्चय ने देव को भी उनके सामने पूज्यभाव से झुका दिया था।

इसलिए दोस्तों, देखा आपने पवित्रता, दया और वचन पालन के लिए समर्पणभाव का क्या परिणाम आता है? अहिंसा एक बहुत बड़ा धर्म है उसे खास ध्यान में रखना।

 

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