एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश देने के लिए आए। उनके हाथ में एक सुंदर रुमाल था। उनका इंतज़ार कर रहे हज़ारों शिष्यों को उनके हाथ में रुमाल देखकर आश्चर्य हुआ क्योंकि भगवान के हाथ में कोई चीज़ होना, बहुत ही असामान्य बात थी। भगवान बुद्ध उपदेश देते-देते रुमाल में गाँठें बाँधने लगे। सभी उनकी ओर, राह देखकर बैठे हुए थे।
रुमाल में चार, पाँच गाठें बाँधने के बाद उन्होंने सभी को वह बताते हुए पूछा, “क्या यह वही रुमाल है जो मैं शुरुआत में अपने साथ लाया था या उसमें कुछ बदलाव है?”
एक शिष्य ने कहा, “भगवान, रुमाल तो वही है, लेकिन उसकी स्थिति बदल गई है।"
भगवान बुद्ध ने कहा, “ठीक है, लेकिन यदि मैं चाहूँ तो क्या इस रुमाल को पहले जैसा बना सकता हूँ?”
दूसरे शिष्य ने कहा, “भगवान, हाँ वह संभव है लेकिन आपको रुमाल की सभी गाँठे खोलनी पड़ेंगी।"
भगवान बुद्ध ने पूछा, “गाँठें किस तरह खोलेंगे? रुमाल को खींचने से क्या सभी गाँठें खुल जाएँगी?”
दूसरे एक शिष्य ने कहा, “भगवान, यदि हम बारीकाई से देखकर ढूँढ निकालें की गाँठ किस तरह बाँधी गयी हैं तो वे आसानी से खुल सकती हैं। लेकिन यदि हम यह नहीं पता लगाएँगे तो संभव है कि रुमाल खींचने से वे गाँठें ज़्यादा मज़बूत हो जाएँगी।"
भगवान बुद्ध ने समझाया, “एकदम ठीक, कई बार हम अपने फेन्ड्स और फैमिली के साथ बहस और झगड़ा भी करते हैं। यदि मैं ही सही हूँ ऐसा आग्रह रखने से, गाँठें मज़बूत हो जाती हैं। और इससे अन्य लोगों के साथ भेद पड़ जाता है।"
गाँठे खोलते खोलते भगवान बुद्ध ने समझाया, “यदि हम गाँठों के कारणों का पता लगा लेंगे, दूसरों से किसी भी प्रकार की आशा नहीं रखेंगे, और गाँठों के मूल को दूर करने की कोशिश करेंगे तो हम आसानी से सभी गाँठें खोल सकेंगे। हमारे संबंध भी इस रुमाल जैसे सरल बन जाएँगे।"
तो मित्रों...चलिए हम अपने पेरेन्टस्, फेन्ड्स और टीचर से कितनी अपेक्षाएँ रखते हैं उसका अपने अंदर पता लगाते हैं। क्या उससे झगड़ा या बहस नहीं होती? ओफ कोर्स, (अपेक्षा) उससे ही होती हैं! तो अब हम दूसरों से कोई अपेक्षा नहीं रखेंगे और हमारे पास जो है उससे खुश रहेंगे और दूसरों को भी खुश करेंगे!