भगवान ऋषभदेव के समय की बात है। उनके पौत्र मरीचि ने भगवान के पास दीक्षा ली थी। गरमी के दिन थे। राजा भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि भगवान के साथ दोपहर में विहार कर रहे थे। सूरज की किरणों की वजह से तपे हुए मार्ग पर चलना उनके लिए असह्य हो रहा था। गरम पवन अग्नि की ज्वालाओं की तरह उनके शरीर को जला रहा था। पसीने की वजह से उनके शरीर से बदबू आ रही थी। इस बात से तंग आकर उन्होंने सोचा कि, "मुझ से चारित्रव्रत का पालन करना मुश्किल है और अगर उसे छोड़कर वापस घर चला जाऊँगा तो कुल की आबरू मिट्टी में मिल जाएगी।" ऐसा सोचकर उन्होंने बीच का रास्ता ढूँढ निकाला।
थोड़ी छूट के साथ वे चारित्रव्रत का पालन करने लगे और भगवान के साथ-साथ विचरने लगे। जहाँ भगवान स्थिरवास करते थे वहीं बाहर वे खुद भी रहते थे। इस तरह वे ना ही मरीचि मुनि हुए और ना ही गृहस्थ हुए, लेकिन एक नए ही वेशधारी हुए। लोग जब उनसे धर्म अंगीकार करने आते थे, तब वे सच्चा धर्म तो भगवान के पास है, ऐसा बताकर उनके पास भेजते थे।
एक दिन भरत राजा भगवान के दर्शन करने आए। भगवान की देशना सुनने के बाद उन्होंने बहुत विनयपूर्वक भगवान से पूछा, "इस चोबिसी में तीर्थंकर होनेवाला कोई जीव यहाँ है?" प्रभुने जवाब दिया, "यह आपका मरीचि नामक पुत्र है वह इसी भरत क्षेत्र में महावीर के नाम से चोबीसवाँ तीर्थंकर बनेगा। उससे पहले वह त्रिपुष्ट नाम का वासुदेव बनेगा और प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती भी बनेगा।"
यह सुनकर भरत राजा मरीचि को नमस्कार करने गए। नमस्कार करते हुए उन्होंने मरीचि से कहा, "आप त्रिपुष्ट नामक प्रथम वासुदेव बनोगे। बाद में चक्रवर्ती बनोगे और उसके बाद चोबीसवें तीर्थंकर बनोगे। मैं आपके तीर्थंकर पद को नमस्कार करता हूँ ऐसा कहकर उन्होंने मरीचि की तीन प्रदक्षिणा की और उन्हें नमस्कार करके वापस लौटे ।
राजा की वाणी सुनकर मरीची बहुत आनंदित हो उठे। वे सोचने लगे, "ओहोहो ! मैं सर्व वासुदेव में से प्रथम वासुदेव बनूँगा। उसके बाद चक्रवर्ती भी बनूँगा और आखिरी में तीर्थंकर भी बनूँगा। मेरे दादा प्रथम तीर्थंकर हैं। मेरे पिता प्रथम चक्रवर्ती हैं। इसलिए मेरा कुल श्रेष्ट है। जैसे सभी ग्रहों में सूर्य और तारों में चंद्र श्रेष्ट हैं। उसी तरह सभी कुलों में मेरा कुल सर्वश्रेष्ट है। "इस तरह सोचते हुए वे अपने कुल का अभिमान करने लगे। अभिमान की तीव्रता इतनी बढ़ गई कि उसी समय उन्होंने नीचे कुल का कर्म बाँध दिया। मतलब दूसरे जन्म में उनका जन्म नीचे (हल्के) कुल में हुआ।
देखा दोस्तों, ऊँचे कुल का अभिमान उन्हें नीचे कुल में ले गया। इस तरह अभिमान करने से अधोगति ही होती है।
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