एक बार भगवान महावीर ध्यान में स्थिर खड़े थे। देवलोक में इंद्रदेव ने भगवान की एकाग्रता देखकर वहीं से उनको वंदना और प्रशंसा की|
देवलोक से, इंद्रदेव की सभा में मौजूद संगम देव नामक देवता भगवान महावीर से ईर्ष्या करने लगे।
संगमदेव: देवराज कोई भी मानव इतना शक्तिशाली नहीं होता कि जिसे देवशक्ति भी विचलित न कर सके | मै तो महावीर को एक ही रात में ध्यान से विचलित कर दूँगा |
संगमदेव भगवान महावीर की परीक्षा लेने धरती की ओर चल पड़े| पृथ्वी पर आकर संगम देव भगवान का ध्यान भंग करने की कोशिश करने लगे |
उन्होंने चारों तरफ धूल उड़ाकर भगवान के नाक और मुँह को धूल से भर दिया |
साँप और बिच्छू को प्रभु के शरीर पर छोड़ दिया |
हाथी का रूप लेकर उन्होंने भगवान को सूँड से पकड़कर आकाश में उछाल दिया |
पिशाच बनकर मुँह में से ज्वालामुखी निकालकर भगवान को भस्म करने की कोशिश की |
भगवान के दोनों पैरों के बीच आग जलाकर खीर बनाई |
शेर और चीते का रूप लेकर भगवान को फाड़कर चीरने का प्रयत्न किया |
संगम देव ने भगवान के सिर पर हजारों टन वजन का कालचक्र चलाया| इस कालचक्र के वजन से भगवान घुटनों तक ज़मीन में धस गए |
इतने सारे उपसर्ग करने के बावदूज भी संगमदेव भगवान का ध्यान भंग नहीं कर सके|
भगवान महावीर ने कई दिनों से उपवास किया हुआ था | जब प्रभु भिक्षा लेने गाँव में जाते तब संगमदेव, भगवान को ख़राब चीज़े देने के लिए गाँव वालो से कहते |
छ: महीने बिना भोजन के बित गए| न ही भगवान ने किसी के प्रति थोड़ा सा भी भाव बिगाड़ा और न ही अपनी परिस्थिति से थोड़ा सा भी दुखी हुए |
छ: महीनो तक भगवान को परेशान करने के बाद अंत में संगम देव ने हार मान ली और भगवान के चरणों में गिर पड़े |
संगमदेव: मै हार गया प्रभु! देवराज इंद्र ने जैसा कहा था आप वैसे ही अडिग ध्यानी और तपस्वी हैं | मुझे क्षमा कीजिए |
भगवान महावीर: हमने कभी आपका कोई दोष देखा ही नहीं | हमारी और से आपको सहज क्षमा होती है | आप निश्चिंत होकर जाइए |
मित्रों, प्रभु इतने अद्भुत सामर्थी थे! हम ऐसे तीर्थंकर भगवान की पूजा करते हैं जो इस तरह की भयानक प्रतिकूलताओं के सामने स्थिर रहे।
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