एक बार श्रीमद् जी ने अंबालाल भाई को आज्ञा दी कि, 'अंबालाल, बाहर का यह आँगन साफ कर लो।' श्रीमद् जी का आशय अंबालाल भाई समझ नहीं पाए और उन्होंने नौकर को बुलाकर कहा कि, 'तू बाहर का आँगन वगैरह सब साफ कर देना।'
यह सुनकर श्रीमद् जी ने अत्यंत करुणा से कहा, "अंबालाल, नौकर रखना हमें भी आता है।"
इन शब्दों को सुनकर अंबालाल भाई सावधान हो गए और आज्ञाधीन रहकर खुद ही आँगन साफ कर दिया। उस वक्त उन्हें अपनी गलती समझ में आई कि सिर्फ अपने ही हित के लिए दी गई सेवा या आज्ञा का पालन खुद न करते हुए अन्य को सौंप देना कितनी मूर्खता है? उनके द्वारा दी गई हर एक सेवा, आज्ञा में मेरा ही कल्याण रहा हुआ है, फिर चाहे क्यों न वह आँगन साफ करनेवाली सेवा हो, ऐसा उन्होंने तय कर लिया।
उस दिन से उन्हें अनुभव हुआ कि श्रीमद् जी ने आँगन साफ करवाकर वास्तव में तो उनका चित्त साफ कर दिया है।
अन्य एक प्रसंग है। श्रीमद् जी एक बार बोध दे रहे थे, जिसमें उन्होंने कुछ शब्द अंबालाल भाई से कहे। दो-तीन घंटे बाद जब वही शब्द दोबारा उनसे पूछे तब उन्होंने कहा कि, 'मुझे याद नहीं है।'
श्रीमद् जी ने उनसे कहा कि, "यहाँ से उठकर चले जाओ। जब शब्द याद आ जाएँ तभी हमारे पास आना।"
अंबालाल भाई रोते हुए, खिन्न हृदय से बाहर चले गए और शब्दों को याद करने लगे। इतने में एक मुमुक्षु ने आकर श्रीमद् जी से कहा, 'शब्दों तो याद आएँगे, उन्हें अंदर आने दीजिए।'
लेकिन श्रीमद् जी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया, शाम को जब शब्द याद आ गए तब उन्होंने अंबालाल भाई को ऊपर आने दिया।
उस दिन से जिन्हें दो-तीन घंटे बाद ही शब्द याद नहीं रहते थे, ऐसे अंबालाल भाई को आठ दिन बाद भी श्रीमद् जी का बोध अक्षर अक्षर लिख सकें ऐसे याद रहने लगा।
कैसा होता है गुरु का प्रताप! कमज़ोरी को शक्ति में परिवर्तित कर देनेवाला गुरु का अद्भुत सामर्थ्य बेजोड़ है।