चलिए, हम निर्भय और बहादुर स्वामी विवेकानंद, जो कि नरेन्द्र के नाम से पहचाने जाते हैं, उनके बचपन के बारे में पढ़ें|
बचपन में उनके दोस्त के घर एक चंपा का पेड़ था, दोनों दोस्त उस पर चढ़ते और खूब मस्ती करते थे। पेड़ पर उल्टे सिर लटकना, वह उनकी मनपसंद क्रिया थी।
एक दिन जब वे चंपा के पेड़ की डालियों पर खेल रहे थे तब उनके दोस्त के दादा जी ने उन्हें देखा। बच्चे पेड़ से गिर जाएँगे, ऐसे डर से नज़दीक आकर उन्हें चेतावनी दी कि, “बच्चों, पेड़ पर मत चढ़ना।” नरेन्द्र ने जिज्ञासा से पूछा, “क्यों?”
दादा जी ने उनके पास आकर कहा कि, “रात को पेड़ के आसपास एक भूत भटकता है। यदि कोई भी पेड़ पर चढ़ता है तो वह उसकी गर्दन मरोड़ देता है।” छोटे से नरेन्द्र ने “हाँ” कहकर सिर हिलाया। जैसे ही दादा जी गए कि तुरंत ही वे फिर पेड़ पर चढ़ गए।
दादा जी ने जो कहा, वह सुनकर उनका दोस्त डर गया और बोला, “नरेन्द्र, मेहरबानी करके जल्दी नीचे आ जा, यहाँ एक भूत है!” लेकिन नरेन्द्र ने ज़ोर से हँसकर कहा कि, “तू क्यों डरता है? यदि सचमुच यहाँ भूत होता तो अब तक उसने मेरी गर्दन मरोड़ दी होती!”
इस कहानी से हमें स्वामी विवेकानंद की निडरता और विवेक बुद्धि का उपयोग करने की, उनकी क्षमता के बारे में जानने मिलता है। (बोध मिलता है।)
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