कई साल पहले की बात है। श्रीकृष्ण भगवान के महल में खुशियाँ ही खुशियाँ छा गई है। कृष्ण भगवान की पत्नी रुक्ष्मणी देवी के यहाँ एक बच्चे का जन्म हुआ है। और बच्चा अचानक से गायब हो जाता है। बच्चे का अपहरण हो जाता है!! पूरा वातावरण बदल जाता है। रुक्ष्मणी देवी बहुत ज़ोर से रोने लगती हैं। सभी दासियाँ उन्हें शांत करने के प्रयास करती हैं। कृष्ण भगवान के पास भी कोई इलाज नहीं था कि क्या हुआ और क्यों हुआ। तभी अचानक....
"नारायण, नारायण।" नारदमुनि आकाश में उड़ते हुए महल में आए। रुक्ष्मणी देवी के साथ क्या हुआ यह पूछने लगे। रुक्ष्मणी देवी से तो रहा ही नहीं गया। उन्होंने विनती करते हुए कहा, "मेरा पुत्र लाकर दीजिए" नारदमुनि ने विश्वास देते हुए कहा कि मैं अभी जानकारी प्राप्त करके आता हूँ।
ऐसा कहकर नारदमुनि आकाश में उड़कर महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी के पास पहुँच गए। प्रभु को नमस्कार करके सारी बात बताई और प्रभु से पूछा कि, "प्रभु हकीकत क्या है ?" सीमंधर स्वामी तो केवलज्ञानी, इसलिए उन्हें पूरे ब्रह्मांड के त्रिकाल के एक-एक परमाणु दिखते हैं। उस द्रष्टि के उपयोग से उन्होंने देखा और कहा....
"पूर्व जन्म में रुक्ष्मणी देवी एक ब्राह्मणी थी। एकबार वे एक जंगल में गई थीं। वहाँ पर उन्होंने एक मोर का बच्चा देखा। उसे देखते ही उन्हें वह पसंद आ गया। इसलिए वे तो उसे लेकर घर आ गई। वहाँ जंगल में उस बच्चे की माँ, अपने बच्चे को ढूँढने लगी। काफी समय के बाद भी बच्चा नहीं मिलने पर उसे आघात लगा। हर जगह भटकते हुए उसे ढूँढने लगी। एकबार उसे ढूँढते हुए वह गाँव में आ गई। वह वेदना से रो रही थी। लेकिन उस ब्राह्मणी पर इस बात का ज़रा सा भी असर नहीं हुआ। वह तो प्रेम से मोर के बच्चे को पाल रही थी। गाँव के लोगों ने भी उसे बहुत समझाया। ऐसे करते-करते 16 महिनें बीत गए। उस मोर की माँ तो हररोज़ अपने बच्चे को ढूँढती थी। आखिर 16 महिनों बाद उस ब्राह्मणी को दया आई और वह उस मोर के बच्चे को उसकी माँ के पास छोड़ आई।
इस पाप की वजह से इस जन्म में रुक्ष्मणी माता को अपने पुत्र का वियोग भुगतना पड़ रहा है। एक देव उनके बच्चे का अपहरण करके ले गया है। उसका नाम प्रद्युम्न है। अब वह बालक 16 साल के बाद उसकी माता को मिल पाएगा।
नारदमुनि से रहा नहीं गया। उन्होंने पूछा, "16 महिनें के गुनाह की सजा 16 साल?" सीमंधर स्वामी ने समझाते हुए कहा, "हाँ, इस जन्म में जो पाप करते हैं उसका फल अगले जन्म में चक्रवृद्धि ब्याज के साथ भुगतना पड़ता है।"
समाधान हो जाने पर, सीमंधर स्वामी से नारदमुनि रुक्ष्मणी देवी के पास आते हैं और उन्हें सारी बात बताते हैं। रानी को अपनी भूल का पश्चाताप होता है लेकिन अपना बच्चा सलामत है ऐसा जानकर शांति होती है।
मोरल : देखा दोस्तों, किसी से पूछे बिना किसी की चीज़ ले लेते हैं तो दूसरे जन्म में ब्याज के साथ चुकाना पड़ता है।
Related Links-
Moral Story- Is Stealing good?
Magazine- Stealing