मगध राज्य के श्रेणिक महाराज की बात है। उनका मेघकुमार नाम का एक संस्कारी पुत्र था। राजकुमार था इसलिए ऐशोआराम की तो बात ही क्या करनी ! इस तरह मेघकुमार बहुत आनंद में दिन गुज़ार रहे थे।
एक बार उनके राज्य में भगवान महावीर पधारे। उनके दर्शन करने के लिए मेघकुमार भी उनके माता-पिता के साथ गए। भगवान को देखते ही उन्हें दीक्षा लेने की तीव्र इच्छा हुई। उन्होंने अपने माता-पिता को अपनी इच्छा बताई। उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया कि दीक्षा लेने के बाद खुले पैर चलना पड़ता है, जो मिले वो खाना पड़ता है, ज़मीन पर नीचे सोना पड़ता है, तप करने पड़ते हैं। वहाँ कोई सुख या आराम नहीं मिलता। मेघकुमार ने कहा, 'मुझे मोक्ष का ही सुख चाहिए। दूसरा कोई सुख नहीं चाहिए।' मेघकुमार के अडिग निश्चय के सामने माता-पिता भी झुक गए और उन्हें दीक्षा लेने के लिए रज़ामंदी दे दी।
मेघकुमार ने दीक्षा ले ली। वे बहुत खुश होते हैं। अब वो राजकुमार न होकर मुनि मेघकुमार बन गए।
दीक्षा की पहली ही रात मेघकुमार दूसरे मुनियों के साथ सोने की तैयारी करते हैं। सब को उम्र के हिसाब से लाइन में सोना था, मेघकुमार सब से छोटे होने के कारण उनकी सोने की जगह रूम के दरवाज़े के पास आती है। पूरी रात मुनियों के आने-जाने से बार-बार उनके पैर मेघकुमार को लगते थे। इस तरह बार-बार पैर लगने से वे पूरी रात सो नहीं पाते। कल तक नर्म गद्दे पर सोनेवाले मेघकुमार को आज ज़मीन पर पतली रजाई पर सोते-सोते महल याद आने लगा। उनको लगता है कि मेरे माता-पिता सही कहते थे। यहाँ तो सुख या आराम कुछ भी नहीं है। कल तक मैं महल में कितने मान-सम्मान से रहता था और आज सब मुझे लात मारकर जा रहे हैं, मैं यहाँ पूरी ज़िंदगी इस तरह से कैसे रहूँगा? मुझे घर वापस जाना है। ऐसा सोचकर वे सुबह होने की राह देखते हुए सो जाते हैं।
दूसरे दिन सुबह होते ही भगवान महावीर के पास पहुँच जाते हैं। भगवान महावीर तो केवलज्ञानी थे इसलिए वे मेघकुमार के आने का आशय जान जाते हैं। वे मेघकुमार को उसका पिछला जन्म याद दिलवाते हैं। विंध्याचल नाम के जंगल में मेघकुमार एक बड़े हाथी के रूप में था। एक बार उस जंगल में बहुत बड़ी आग लगी। सभी पेड़ जलने लगे। सभी प्राणी चिल्लाते हुए यहाँ-वहाँ भागने लगे। उस जंगल के बीच में एक खुला मैदान था। जहाँ पेड़ नहीं थे। इसलिए वहाँ आग फैल नहीं पाई। सभी प्राणी वहाँ आ गए। पूरा मैदान खचाखच भर गया। एक इंच की भी जगह नहीं बची थी। बाघ, शेर, खरगोश, हाथी, सभी एक ही जगह पर एक-दूसरे को संभालकर खड़े हो गए जैसे कि एक ही परिवार के हों।
मेघकुमार का जीव जोकि एक हाथी था वो भी वहाँ खड़ा था। उसे पैर में खुजली होने की वजह से उसने अपना पैर ऊँचा किया। उतने में ही एक खरगोश भागकर ऊँचे किए हुए पैर की जगह पर बैठ गया। हाथी जैसे ही अपना पैर नीचे रखने जाता है तभी उसकी नज़र खरगोश पर पड़ी। वो मर ना जाए इसलिए वो अपना पैर उपर ही रखता है।
एक दिन गुज़रा, दूसरा दिन गुज़रा। आग चालू ही थी। सभी पशु भूखे-प्यासे एक ही जगह पर खड़े थे। उसमें भी हाथी तो एक पैर ऊपर रखकर ही खड़ा था। इस तरह ढाई दिन तक हाथी ने पैर ऊपर रखा था। किस लिए? खरगोश मर ना जाए इसलिए। ढाई दिन के बाद जब जंगल की आग शांत हुई तब सभी प्राणी वहाँ से अलग हुए। हाथी का पैर ढाई दिन तक ऊपर ही रहने से अकड़ गया था। जैसे ही उसने पैर नीचे रखा तुरंत ही वो गिर गया। उसने तीन दिन से कुछ खाया-पीया नहीं था इसलिए कमज़ोरी और असह्य वेदना की वजह से वो खड़ा नहीं हो पाता था। थोड़ी ही देर में उसकी वहाँ मृत्यु हो गई और दूसरे जन्म में राजा के यहाँ मेघकुमार बनकर जन्म लिया।
बात को खत्म करते हुए भगवान महावीर उन्हें समझाते हैं कि एक खरगोश को बचाने के लिए तुमने कितना कठिन तप किया था? उसकी तुलना में ये पैर लगने का दुःख तो कुछ भी नहीं है! तुम्हें कितनी सुंदर समझ मिली है, तुम कितने पुण्यशाली हो, मोक्ष जाने के बिल्कुल लायक हो। सिर्फ ये पैर लगने के दुःख से मोक्ष का मार्ग कैसे छोड़ा जा सकता है?
मेघकुमार समझ जाते हैं और भगवान से माफ़ी मांगते हैं। फिर से सुंदर तरीके से साधू जीवन जीने लगते हैं। इसलिए वे दूसरे जन्म में देवगति प्राप्त करते हैं।
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